इन दिनों दिल्ली में हवा जहरीली होती जा रही है. राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर 315 तक पहुंच गया है और पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की मात्रा 350 माइक्रोन प्रति घन मीटर से ज्यादा मिली है.
दिल्ली में बढ़े प्रदूषण ने बरेली में भी खतरे की घंटी बजा दी है. 15 दिनों में बरेली की आबोहवा में प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है. पीएम 2.5जिसकी सामान्य मात्रा 60 माइक्रोन प्रति घन मीटर होनी चाहिए, वह 75 से ऊपर मिली है. पीएम 10 जिसकी सामान्य मात्रा 80-100 तक रहनी चाहिए वह 140-150 माइक्रोन प्रति घन मीटर मिली.
ये स्थिति भले ही अभी बहुत घातक न हो, लेकिन जिस तेजी से प्रदूषण का ग्राफ बढ़ा है वह चिंताजनक जरूर है. एक्सपर्ट की मानें तो दिल्ली में बढ़ेे प्रदूषण से बरेली की आबोहवा प्रभावित होना कोई बड़ी बात नहीं है. प्रदूषण के कण वातावरण में ज्यादा नमी होने के कारण एकत्र होते हैं और धीरे-धीरे इलाके में फैलते जाते जाते हैं.
अब मौसम ठंडा हो रहा है जिससे वातावरण में कारण नमी बढ़ रही है. लिहाजा हवा में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है. हरियाणा की तरह अन्य क्षेत्रों में भी पराली जलाई जाती है. रुहेलख्ंाड क्षेत्र में भी धान की काफी खेती होती है. यहां भी किसान पराली जला देते हैं. यही वजह है कि आसमान में हल्की धुंध बढ़ने लगी है. डॉक्टरों ने मार्निंग वॉकर को सतर्क रहने की सलाह दी है, क्योंकि सुबह के वक्त ज्यादा नमी होती है और प्रदूषण के कण काफी नीचे होते हैं.
जिन लोगों को सांस की बीमारी है वे मास्क का उपयोग करें, क्योंकि पीएम 2.5 उनके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. बच्चे और बुजुर्ग सुबह टहलने से बचें. एक्सपर्ट की मानें तो ज्यादा कण शरीर में जमा होने से हार्टअटैक हो सकता है और शरीर के ऑर्गन प्रभावित हो सकते हैं.
15 दिन में प्रदूषण का औसत स्तर
पीएम 2.5
वर्तमान स्थिति सामान्य स्थिति
75 60
पीएम 10
वर्तमान स्थिति सामान्य स्थिति
140-150 80-100
नोट : मात्रा माइक्रोन प्रति घन मीटर
नमी कम होने और आसमान में बादल छाने से पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर पिछले 15 दिनों में बढ़ा है. दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने का भी यहां असर दिख रहा है. इन दिनों धान की पराली जलाई जाती है, इसी से प्रदूषण बढ़ता है. अब दिवाली भी आने वाली है, लिहाजा अभी से जागरूक होना होगा कि कम से कम पटाखे जलाएं ताकि वातावरण जहरीला न हो. अब नमी बढ़ने से जहरीले कण निचले स्तर पर ही रहेंगे.
– डॉ. डीके सक्सेना, पर्यावरणविद