बरेली कॉलेज में हुए घपलों की जांच में हैरतअंगेज तथ्य सामने आ रहे हैं. अभी तक की छानबीन के नतीजे बता रहे हैं कि पिछले सालों में करोड़ों के फंड को कायदे-कानून की परवाह किए बगैर न सिर्फ आंखें मूंदकर ठिकाने लगा दिया गया बल्कि अपने चहेतों को भी उपकृत करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई.
फिलहाल छह करोड़ की लागत से बने परीक्षा भवन के निर्माण और साइकिल स्टैंड का ठेका कई सालों से बगैर टेंडर के दे देने के मामले सामने आए हैं. स्ववित्त पोषित विभागों में भी बड़े पैमाने पर घोटाले सामने आए हैं. बरेली कॉलेज में घोटालों की शिकायत कुछ छात्र नेताओं और कर्मचारियों ने डीएम और कमिश्नर से की थी.
डीएम की ओर से घोटालों की जांच के लिए क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डॉ. राजेश प्रकाश के नेतृत्व में लेखाधिकारियों की टीम बनाई थी. यह टीम बरेली कॉलेज में बृहस्पतिवार से पिछले पांच सालों के आय-व्यय के रिकॉर्ड खंगाल रही है. टीम को आय-व्यय के रिकॉर्ड में बृहस्पतिवार को भी कई खामियां मिली थीं.
शुक्रवार को क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी ने कुछ और रिकॉर्ड अपने कार्यालय मंगाकर छानबीन की तो तमाम और घोटाले सामने आ गए. सबसे बड़ी गड़बड़ी छह करोड़ की लागत से बने परीक्षा भवन के निर्माण का ठेका देने में पकड़ी गई. पता चला कि यह ठेका कॉलेज प्रबंधन ने बगैर टेंडर के ही अपने चहेते को दे दिया था.
इसी तरह साइकिल स्टैंड का ठेका कई सालों से बगैर टेंडर अपने चहेतों को दिया जा रहा था. यह ठेका 15 हजार रुपये महीना पर दिया जाता है. सेल्फ फाइनेंस विभागों की कुल आय का 80 फीसदी शिक्षकों पर खर्च होना चाहिए लेकिन इसमें कई गड़बड़ी मिलीं.
जांच टीम इस नतीजे पर भी पहुंची कि खेल फीस में हर साल आने वाले 15 लाख के शुल्क का पिछले पांच सालों से बंदरबांट किया जा रहा है. जांच शुरू होने के बाद प्रबंधन में खलबली का माहौल है. माना जा रहा है कि जांच रिपोर्ट कमिश्नर और डीएम के पास पहुंचने के बाद प्रबंधन के कुछ करीबियों का गला फंस सकता है. क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डॉ. राजेश प्रकाश ने बताया कि रिकॉर्ड की जांच अभी कुछ दिन चलेगी. इसके बाद डीएम के माध्यम से रिपोर्ट कमिश्नर को भेज दी जाएगी.
चहेतों को करना है उपकृत तो कायदे-कानून की परवाह क्या
जिस विभाग में 10-12 विद्यार्थी, उसके शिक्षक का वेतन 1.60 लाख
सर्वाधिक आय देने वाले बीबीए, बीसीए और बीकॉम जैसे विभागों के शिक्षकों का वेतन सिर्फ 16 से 25 हजार
कमिश्नर के निर्देश पर शुरू हुई जांच से सेल्फ फाइनेंस विभागों में नियुक्त प्रबंधन के करीबी शिक्षकों की धड़कने बढ़ गई हैं. दरअसल सबसे बड़ा खेल सेल्फ फाइनेंस विभागों में ही सामने आ रहा है. जिन विभागों से कॉलेज को सबसे ज्यादा आय हो रही है, उनके शिक्षकों को नाममात्र का वेतन दिया जा रहा मगर जो विभाग घाटे में चल रहे हैं और जिनमें गिनती के विद्यार्थी हैं,
उनके शिक्षकों को कई गुना ज्यादा वेतन मिल रहा है. हालत यह है कि कॉलेज को करोड़ों की आय देने वाला बीबीए, बीसीए, बीकॉम आनर्स विभाग के शिक्षकों को 16 से 25 हजार के बीच वेतन दिया जा रहा जबकि कई सालों से घाटे में चल रहे एमएसी पर्यावरण विभाग के शिक्षक डॉ. एपी सिंह को 1.60 लाख का वेतन मिल रहा .
समिति ने इनके अनुमोदन के रिकॉर्ड भी मांगे है. सेल्फ फाइनेंस के एकाउंटेंट को भी 25 हजार दिए जा रहे हैं. उसकी नियुक्ति प्रक्रिया पर भी आपत्ति लगी है. एमएससी पर्यावरण में इस बार एक दर्जन से भी कम प्रवेश हुए फिर भी इस विभाग में चार शिक्षक रखे गए हैं. दूसरी ओर बीबीए बीसीए विभागों में शिक्षकों की कमी है. कुछ शिक्षकों को छोड़ बाकी का पीएफ भी नहीं काटा जाता.
कॉलेज में 12 विभाग स्ववित्त पोषित
बीबीए, बीसीए, एमएड, बी.लिब, एम.लिब, बीकॉम आनर्स, मनोविज्ञान, होम साइंस, बायोटेक्नॉलाजी, पर्यावरण, अरबी, भूगोल. इनके अलावा डिप्लोमा कोर्स भी सेल्फ फाइनेंस में चलते हैं.
कर्मचारियों को देने के नाम पर जेब खाली
पिछले दो शैक्षिक सत्र से अस्थायी कर्मचारियों को वेतन के लिए कॉलेज से निकाला गया. दोनों बार हंगामा हुआ जिसके बाद उनको दोबारा रखा. कर्मचारियों और छात्रनेताओं ने तमाम गड़बड़ियों की शिकायत की थी. उनका कहना था कि प्रबंधन लाखों रुपयों का बंदरबांट कर रहा है जबकि कर्मचारियों के वेतन के लिए पैसा नहीं.
खेलों का लाखों रुपया जाने कहां गया
खेल में हर साल पंद्रह लाख की फीस कॉलेज को मिलती है. इसके बावजूद कॉलेज में खेल सुविधाएं बदहाल हैं. हॉकी ग्राउंड अभी तक सही नहीं हुआ. बास्केटबॉल खराब हो चुका है. खिलाड़ियों को सुविधाएं नहीं दी जाती. कॉलेज खेल के पैसे खर्च करने भी फंस रहा है. पिछले पांच साल में करीब 75 लाख से ज्यादा की फीस आई. कॉलेज ने आखिर उस पैसे का क्या किया.
घपलों का कॉलेज
बरेली कॉलेज प्रबंधन ने कई सालों से फार्म फीडिंग का ठेका बगैर टेंडर के लिए एक एजेंसी को दिया हुआ है. एजेंसी को फार्म फीडिंग का करीब 12रुपये प्रति छात्र की दर से भुगतान किया जाता है. इस मद में छात्रों से लाखों का शुल्क वसूल किया जाता है.
सिक्योरिटी एजेंसी को हर साल करीब 30 लाख का भुगतान किया जाता है. इस साल इस एजेंसी का रिन्यूवल भी बगैर टेंडर कर दिया गया. प्रॉस्पेक्टस प्रिंटिंग का काम भी कई सालों से एक ही फर्म को दिया जा रहा है. लाखों का यह काम भी बगैर टेंडर के ही दे दिया जाता है.