मकर संक्रांति 2018 पर देश के कई प्रदेशों में बड़े पैमाने पर पतंगबाजी का रिवाज है और पतंगों को आसमान में पहुंचाने के लिए बरेली के मांझे का प्रयोग होता है. यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बरेली के मांझे की तारीफ कर चुके हैं.
हर साल की तरह इस बार भी मकर संक्रांति 2018 पर बड़े पैमाने पर मांझे की सप्लाई कई प्रदेशों में की गई है. मांझा व्यापारियों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस बार 40 फीसदी ज्यादा कारोबार हुआ है और उनका माल दूसरे प्रदेशों में भेजा जा चुका है.
40 प्रतिशत ज्यादा कारोबार
मकर संक्रांति और गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश के कई हिस्सों में पतंगबाजी की जाती है और इन पतंगों को उड़ाने के लिए बरेली से ही मांझे की आपूर्ति की जाती है.
मांझा के व्यापारी इनाम अली ने बताया कि पिछले साल नोटबंदी के चलते मांझा उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुआ था, लेकिन इस बार मांझे की मांग अच्छी खासी है. मकर संक्रांति के लिए दूसरे प्रदेशों में भी मांझे की सप्लाई की जा चुकी है.
इसके बाद गणतंत्र दिवस के लिए भी मांझे की डिमांड आ रही है. इस बार पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत ज्यादा कारोबार हुआ है. इसकी वजह से उनके यहां माल खत्म हो चुका है.
इनाम अली ने बताया कि उनके यहां से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल के तमाम इलाकों में मांझा भेजा गया है.
बहुत मेहनत से बनता है मांझा
मांझा को बनाने में काफी मेहनत लगती है. पहले चावल, रंग, पत्थर को पीस कर उसकी लुगदी बनाई जाती है. फिर अड्डों पर सूती धागे में धार देने के लिए उस पर लुग्दी चढ़ाई जाती है.
एक चरखी मांझा बनाने में करीब एक दिन का समय लग जाता है. मांझा एक रील की चरखी से लेकर 12 रील की चरखी तक में मिलता है और मांझे की कीमत 35 रूपये से सात सौ रूपये के बीच है.
10 हजार परिवार जुड़े हैं मांझा उद्योग से
बरेली के इस 200 साल पुराने उद्योग से मौजूदा समय में करीब दस हजार परिवार जुड़े हुए हैं, जिनमें कारीगरों और व्यापारियों के परिवार हैं.
बरेली में करीब 200 व्यापारी मांझे का कारोबार कर रहे हैं. मांझा उद्योग से जुड़े लोग इसे लम्बे समय से लघु उद्योग का दर्जा देने की मांग करते रहे हैं.
प्रधानमंत्री की जुबान पर भी बरेली का मांझा
बरेली के मांझे के डिमांड यूं ही देश भर में नहीं है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बरेली के मांझे के मुरीद हैं. 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान बरेली में चुनावी रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने बरेली के मांझे का जिक्र किया था.
उन्होंने कहा था कि अगर बरेली का मांझा न होता तो गुजरात की पतंग न उड़ती. इस कारोबार से जुड़े लोगों को तब से इसे लघु उद्योग का दर्जा दिए जाने की उम्मीद जागी थी. लेकिन हालात अभी भी जस के तस हैं.
चाइनीज मांझे ने उद्योग पर असर डाला
बरेली के मांझे की वैसे तो देशभर में धाक है, लेकिन चाइनीज मांझे ने इस उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया है. चाइनीज मांझा नायलॉन का बना होता है और वो आसानी से नहीं टूटता हैं. साथ ही चाइनीज मांझा बरेली के मांझे की तुलना में सस्ता होता है.
इसके कारण लोग चाइना के मांझे को ज्यादा खरीदते हैं. इससे बरेली का मांझा उद्योग खासा प्रभावित हुआ है. चाइनीज मांझे से होने वाले हादसों को देखते हुए कई बार इस पर रोक लगाई गई लेकिन इसकी बिक्री अभी भी जारी है.