बरेली में प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ही एक मात्र ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने आला हजरत के उर्स में हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश कराई थी.
चादर के साथ उर्स की मुबारकबाद का एक पत्र भी भेजा था. गुरुवार को जब उनके देहांत की खबर आम हुई तो दरगाह से जुड़े लोगों के जहन में वर्ष 1999 का वो खूबसूरत नजारा ताजा हो गया.
भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी तत्कालीन पेट्रोलियम राज्यमंत्री संतोष गंगवार, ज्ञानेंद्र शर्मा को दिल्ली से हेलीकॉप्टर लेकर भेजा था. हेलीकॉप्टर पुलिस लाइन्स में उतरा.
यहां से दरगाह के सज्जादानशीन मौलाना सुब्हान रजा खां उर्फ सुब्हानी मियां, राशिद रजा खां और सरताज बाबा हेलीकॉप्टर में सवार हुए. इस्लामिया इंटर कॉलेज, मुहल्ला सौदागरान तक हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए गए थे.
इसके बाद केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने भेजी गई चादर दरगाह पर चढ़ाई. सज्जादानशीन को खत सौंपा. उनकी इस पहल का उर्स में शामिल हर जायरीन ने दिल खोलकर स्वागत किया था. उनके निधन की खबर हर अमन और तरक्की पसंद शख्स की आंखें नम कर गई.
दरगाह पर नहीं हुआ आना
यूं तो उर्से रजवी में हर साल देश के तमाम राजनीतिक दलों की ओर से मुबारकबाद और चादरें आती हैं. भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरह किसी और सरकार ने दरगाह पर फूलों की बारिश कराने का साहस नहीं दिखाया. हालांकि, वे खुद कभी दरगाह नहीं आए.
अटल जी से मिले थे मौलाना
तंजीम उलमा-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बताते हैं कि वर्ष 1998 में उर्दू को सरकारी भाषा घोषित किए जाने की मांग लेकर उनसे पीएमओ में मुलाकात की थी. वह लेखक, शिक्षाविद और सूफियों को बेहद पसंद करते थे. उन्होंने उर्दू के संबंध में कहा भी था कि इस पर विचार करेंगे.